1 Jun 2011

 
रास्ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ  
 
 
 
संस्‍थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जन्‍मजात देशभक्‍त और प्रथम श्रेणी के क्रांतिकारी थे। वे युगांतर और अनुशीलन समिति जैसे प्रमुख विप्‍लवी संगठनों में डॉ. पाण्‍डुरंग खानखोजे, श्री अरविन्‍द, वारीन्‍द्र घोष, त्रैलौक्‍यनाथ चक्रवर्ती आदि के सहयोगी रहे। रासबिहारी बोस और शचीन्‍द्र सान्‍याल द्वारा प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय 1915 में सम्‍पूर्ण भारत की सैनिक छावनियों में क्रान्ति की योजना में वे मध्‍यभारत के प्रमुख थे। उस समय स्‍वतंत्रता आंदोलन का मंच कांग्रेस थी। उसमें भी उन्‍होंने प्रमुख भूमिका निभाई। 1921 और 1930 के सत्‍याग्रहों में भाग लेकर कारावास का दण्‍ड पाया।
 

1925 की विजयादशमी पर संघ स्‍थापना करते समय डॉ. हेडगेवार जी का उद्देश्‍य राष्‍ट्रीय स्‍वाधीनता ही था। संघ के स्‍वयंसेवकों को जो प्रतिज्ञा दिलाई जाती थी उसमें राष्‍ट्र की स्‍वतंत्रता प्राप्ति के लिए तन-मन-धन पूर्वक आजन्‍म और प्रामाणिकता से प्रयत्‍नरत रहने का संकल्‍प होता था। संघ स्‍थापना के तुरन्‍त बाद से ही स्‍वयंसेवक स्‍वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाने लगे थे।
क्रान्तिकारी स्‍वयंसेवक संघ का वातावरण देशभक्तिपूर्ण था। 1926-27 में जब संघ नागपुर और आसपास तक ही पहुंचा था उसी काल में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी राजगुरू नागपुर की भोंसले वेदशाला में पढते समय स्‍वयंसेवक बने। इसी समय भगतसिंह ने भी नागपुर में डॉक्‍टर जी से भेंट की थी। दिसम्‍बर 1928 में ये क्रान्तिकारी पुलिस उपकप्‍तान सांडर्स का वध करके लाला लाजपत राय की हत्‍या का बदला लेकर लाहौर से सुरक्षित आ गए थे। डॉ. हेडगेवार ने राजगुरू को उमरेड में भैया जी दाणी (जो बाद में संघ के अ.भा. सरकार्यवाह रहे) के फार्म हाउस पर छिपने की व्‍यवस्‍था की थी।
 

1928 में साइमन कमीशन के भारत आने पर पूरे देश में उसका बहिष्‍कार हुआ। नागपुर में हडताल और प्रदर्शन करने में संघ के स्‍वयंसेवक अग्रिम पंक्ति में थे।
 

   महापुरूषों का समर्थन
1928 में विजयादशमी उत्‍सव पर भारत की असेम्‍बली के प्रथम अध्‍यक्ष और सरदार पटेल के बडे भाई श्री विट्ठल भाई पटेल उपस्थित थे। अगले वर्ष 1929 में महामना मदनमोहन मालवीय जी ने उत्‍सव में उपस्थित हो संघ को अपना आशीर्वाद दिया। स्‍वतंत्रता संग्राम की अनेक प्रमुख विभूतियां संघ के साथ स्‍नेह संबंध रखती थीं।

शाखाओं पर स्‍वतंत्रता दिवस 31 दिसम्‍बर, 1929 को लाहौर में कांग्रेस ने प्रथम बार पूर्ण स्‍वाधीनता को लक्ष्‍य घोषित किया और 16 जनवरी, 1930 को देश भर में स्‍वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का निश्‍चय किया गया।

डॉ. हेडगेवार ने दस वर्ष पूर्व 1920 के नागपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण स्‍वतंत्रता संबंधी प्रस्‍ताव रखा था, पर तब वह पारित नहीं हो सका था। 1930 में कांग्रेस द्वारा यह लक्ष्‍य स्‍वीकार करने पर आनन्दित हुए हेडगेवार जी ने संघ की सभी शाखाओं को परिपत्र भेजकर रविवार 26 जनवरी, 1930 को सायं 6 बजे राष्‍ट्रध्‍वज वन्‍दन करने और स्‍वतंत्रता की कल्‍पना और आवश्‍यकता विषय पर व्‍याख्‍यान की सूचना करवाई। इस आदेश के अनुसार संघ की सब शाखाओं पर स्‍वतंत्रता दिवस मनाया गया।
 
सत्‍याग्रह6 अप्रैल, 1930 को दांडी में समुद्रतट पर गांधी जी ने नमक कानून तोडा और लगभग 8 वर्ष बाद कांग्रेस ने दूसरा जनान्‍दोलन प्रारम्‍भ किया। संघ का कार्य अभी मध्‍यभारत प्रान्‍त में ही प्रभावी हो पाया था। यहां नमक कानून के स्‍थान पर जंगल कानून तोडकर सत्‍याग्रह करने का निश्‍चय हुआ। डॉ. हेडगेवार संघ के सरसंघचालक का दायित्‍व डॉ. परांजपे को सौंप स्‍वयं अनेक स्‍वयंसेवकों के साथ सत्‍याग्रह करने गए।

जुलाई 1930 में सत्‍याग्रह हेतु यवतमाल जाते समय पुसद नामक स्‍थान पर आयोजित जनसभा में डॉ. हेडगेवार के सम्‍बोधन में स्‍वतंत्रता संग्राम में संघ का दृष्टिकोण स्‍पष्‍ट होता है। उन्‍होंने कहा- ‘स्‍वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के बूट की पालिश करने से लेकर, उनके बूट को पैर से निकाल कर उससे उनके ही सिर को लहुलुहान करने तक के सब मार्ग मेरे स्‍वतंत्रता प्राप्ति के साधन हो सकते हैं। मैं तो इतना ही जानता हूं कि देश को स्‍वतंत्र कराना है।‘’

डॉ. हेडगेवार के साथ गए सत्‍याग्रही जत्‍थे मे आप्‍पा जी जोशी (बाद में सरकार्यवाह) दादाराव परमार्थ (बाद में मद्रास में प्रथम प्रान्‍त प्रचारक) आदि 12 स्‍वयंसेवक थे। उनको 9 मास का सश्रम कारावास दिया गया। उसके बाद अ.भा. शारीरिक शिक्षण प्रमुख (सर सेनापति) श्री मार्तण्‍ड राव जोग, नागपुर के जिलासंघचालक श्री अप्‍पाजी हळदे आदि अनेक कार्यकर्ताओं और शाखाओं के स्‍वयंसेवकों के जत्‍थों ने भी सत्‍याग्रहियों की सुरक्षा के लिए 100 स्‍वयंसेवकों की टोली बनाई जिसके सदस्‍य सत्‍याग्रह के समय उपस्थित रहते थे।
8 अगस्‍त को गढवाल दिवस पर धारा 144 तोडकर जुलूस निकालने पर पुलिस की मार से अनेक स्‍वयंसेवक घायल हुए।
विजयादशमी 1931 को डाक्‍टर जी जेल में थे, उनकी उनुपस्थिति में गांव-गांव में संघ की शाखाओं पर एक संदेश पढा गया, जिसमें कहा गया था- ‘’देश की परतंत्रता नष्‍ट होकर जब तक सारा समाज बलशाली और आत्‍मनिर्भर नहीं होता तब तक रे मना ! तुझे निजी सुख की अभिलाषा का अधिकार नहीं।‘’

जनवरी 1932 में विप्‍लवी दल द्वारा सरकारी खजाना लूटने के लिए हुए बालाघाट काण्‍ड में वीर बाघा जतीन (क्रान्तिकारी जतीन्‍द्र नाथ) अपने साथियों सहित शहीद हुए और श्री बाला जी हुद्दार आदि कई क्रान्तिकारी बन्‍दी बनाए गए। श्री हुद्दार उस समय संघ के अ.भा. सरकार्यवाह थे।

संघ पर प्रतिबन्‍ध
संघ के विषय में गुप्‍तचर विभाग की रपट के आधार पर मध्‍य भारत सरकार (जिसके क्षेत्र में नागपुर भी था) ने 15 दिसम्‍बर 1932 को सरकारी कर्मचारियों को संघ में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया।
डॉ. हेडगेवार जी के देहान्‍त के बाद 5 अगस्‍त 1940 को सरकार ने भारत सुरक्षा कानून की धारा 56 व 58 के अन्‍तर्गत संघ की सैनिक वेशभूषा और प्रशिक्षण पर पूरे देश में प्रतिबंध लगा दिया।

1942 का भारत छोडो आंदोलन
संघ के स्‍वयंसेवकों ने स्‍वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत छोडो आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। विदर्भ के अष्‍टी चिमूर क्षेत्र में समानान्‍तर सरकार स्‍थापित कर दी। अमानुषिक अत्‍याचारों का सामना किया। उस क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक स्‍वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान किया। नागपुर के निकट रामटेक के तत्‍कालीन नगर कार्यवाह श्री रमाकान्‍त केशव देशपांडे उपाख्‍य बाळासाहब देशपाण्‍डे को आन्‍दोलन में भाग लेने पर मृत्‍युदण्‍ड सुनाया गया। आम माफी के समय मुक्‍त होकर उन्‍होंने वनवासी कल्‍याण आश्रम की स्‍थापना की।

देश के कोने-कोने में स्‍वयंसेवक जूझ रहे थे। मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झण्‍डा फहराते स्‍वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलाई, अनेक घायल हुए।
आंदोलनकारियों की सहायता और शरण देने का कार्य भी बहुत महत्‍व का था। केवल अंग्रेज सरकार के गुप्‍तचर ही नहीं, कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी के आदेशानुसार देशभक्‍तों को पकडवा रहे थे। ऐसे में जयप्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली दिल्‍ली के संघचालक लाला हंसराज गुप्‍त के यहां आश्रय पाते थे। प्रसिद्ध समाजवादी श्री अच्‍युत पटवर्धन और साने गुरूजजी ने पूना के संघचालक श्री भाऊसाहब देशमुख के घर पर केन्‍द्र बनाया था। ‘पतरी सरकार’ गठित करनेवाले प्रसिद्ध क्रान्तिकर्मी नाना पाटील को औंध (जिला सतारा) में संघचालक पं. सातवलेकर जी ने आश्रय दिया।

स्‍वतंत्रता प्राप्ति हेतु संघ की योजनाब्रिटिश सरकार के गुप्‍तचर विभाग ने 1943 के अन्‍त में संघ के विषय में जो रपट प्रस्‍तुत की वह राष्‍ट्रीय अभिलेखागार की फाइलों में सुरक्षित है, जिसमें सिद्ध किया है कि संघ योजनापूर्वक स्‍वतंत्रता प्राप्ति की ओर बढ रहा है। - सभार सुमन सौरभ ब्लाँग
संस्‍थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जन्‍मजात देशभक्‍त और प्रथम श्रेणी के क्रांतिकारी थे। वे युगांतर और अनुशीलन समिति जैसे प्रमुख विप्‍लवी संगठनों में डॉ. पाण्‍डुरंग खानखोजे, श्री अरविन्‍द, वारीन्‍द्र घोष, त्रैलौक्‍यनाथ चक्रवर्ती आदि के सहयोगी रहे। रासबिहारी बोस और शचीन्‍द्र सान्‍याल द्वारा प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय 1915 में सम्‍पूर्ण भारत की सैनिक छावनियों में क्रान्ति की योजना में वे मध्‍यभारत के प्रमुख थे। उस समय स्‍वतंत्रता आंदोलन का मंच कांग्रेस थी। उसमें भी उन्‍होंने प्रमुख भूमिका निभाई। 1921 और 1930 के सत्‍याग्रहों में भाग लेकर कारावास का दण्‍ड पाया।
1925 की विजयादशमी पर संघ स्‍थापना करते समय डॉ. हेडगेवार जी का उद्देश्‍य राष्‍ट्रीय स्‍वाधीनता ही था। संघ के स्‍वयंसेवकों को जो प्रतिज्ञा दिलाई जाती थी उसमें राष्‍ट्र की स्‍वतंत्रता प्राप्ति के लिए तन-मन-धन पूर्वक आजन्‍म और प्रामाणिकता से प्रयत्‍नरत रहने का संकल्‍प होता था। संघ स्‍थापना के तुरन्‍त बाद से ही स्‍वयंसेवक स्‍वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाने लगे थे।
क्रान्तिकारी स्‍वयंसेवक
संघ का वातावरण देशभक्तिपूर्ण था। 1926-27 में जब संघ नागपुर और आसपास तक ही पहुंचा था उसी काल में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी राजगुरू नागपुर की भोंसले वेदशाला में पढते समय स्‍वयंसेवक बने। इसी समय भगतसिंह ने भी नागपुर में डॉक्‍टर जी से भेंट की थी। दिसम्‍बर 1928 में ये क्रान्तिकारी पुलिस उपकप्‍तान सांडर्स का वध करके लाला लाजपत राय की हत्‍या का बदला लेकर लाहौर से सुरक्षित आ गए थे। डॉ. हेडगेवार ने राजगुरू को उमरेड में भैया जी दाणी (जो बाद में संघ के अ.भा. सरकार्यवाह रहे) के फार्म हाउस पर छिपने की व्‍यवस्‍था की थी।
1928 में साइमन कमीशन के भारत आने पर पूरे देश में उसका बहिष्‍कार हुआ। नागपुर में हडताल और प्रदर्शन करने में संघ के स्‍वयंसेवक अग्रिम पंक्ति में थे।
महापुरूषों का समर्थन
1928 में विजयादशमी उत्‍सव पर भारत की असेम्‍बली के प्रथम अध्‍यक्ष और सरदार पटेल के बडे भाई श्री विट्ठल भाई पटेल उपस्थित थे। अगले वर्ष 1929 में महामना मदनमोहन मालवीय जी ने उत्‍सव में उपस्थित हो संघ को अपना आशीर्वाद दिया। स्‍वतंत्रता संग्राम की अनेक प्रमुख विभूतियां संघ के साथ स्‍नेह संबंध रखती थीं।
शाखाओं पर स्‍वतंत्रता दिवस
31 दिसम्‍बर, 1929 को लाहौर में कांग्रेस ने प्रथम बार पूर्ण स्‍वाधीनता को लक्ष्‍य घोषित किया और 16 जनवरी, 1930 को देश भर में स्‍वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का निश्‍चय किया गया।
डॉ. हेडगेवार ने दस वर्ष पूर्व 1920 के नागपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण स्‍वतंत्रता संबंधी प्रस्‍ताव रखा था, पर तब वह पारित नहीं हो सका था। 1930 में कांग्रेस द्वारा यह लक्ष्‍य स्‍वीकार करने पर आनन्दित हुए हेडगेवार जी ने संघ की सभी शाखाओं को परिपत्र भेजकर रविवार 26 जनवरी, 1930 को सायं 6 बजे राष्‍ट्रध्‍वज वन्‍दन करने और स्‍वतंत्रता की कल्‍पना और आवश्‍यकता विषय पर व्‍याख्‍यान की सूचना करवाई। इस आदेश के अनुसार संघ की सब शाखाओं पर स्‍वतंत्रता दिवस मनाया गया।
सत्‍याग्रह
6 अप्रैल, 1930 को दांडी में समुद्रतट पर गांधी जी ने नमक कानून तोडा और लगभग 8 वर्ष बाद कांग्रेस ने दूसरा जनान्‍दोलन प्रारम्‍भ किया। संघ का कार्य अभी मध्‍यभारत प्रान्‍त में ही प्रभावी हो पाया था। यहां नमक कानून के स्‍थान पर जंगल कानून तोडकर सत्‍याग्रह करने का निश्‍चय हुआ। डॉ. हेडगेवार संघ के सरसंघचालक का दायित्‍व डॉ. परांजपे को सौंप स्‍वयं अनेक स्‍वयंसेवकों के साथ सत्‍याग्रह करने गए।
जुलाई 1930 में सत्‍याग्रह हेतु यवतमाल जाते समय पुसद नामक स्‍थान पर आयोजित जनसभा में डॉ. हेडगेवार के सम्‍बोधन में स्‍वतंत्रता संग्राम में संघ का दृष्टिकोण स्‍पष्‍ट होता है। उन्‍होंने कहा- ‘स्‍वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के बूट की पालिश करने से लेकर, उनके बूट को पैर से निकाल कर उससे उनके ही सिर को लहुलुहान करने तक के सब मार्ग मेरे स्‍वतंत्रता प्राप्ति के साधन हो सकते हैं। मैं तो इतना ही जानता हूं कि देश को स्‍वतंत्र कराना है।‘’
डॉ. हेडगेवार के साथ गए सत्‍याग्रही जत्‍थे मे आप्‍पा जी जोशी (बाद में सरकार्यवाह) दादाराव परमार्थ (बाद में मद्रास में प्रथम प्रान्‍त प्रचारक) आदि 12 स्‍वयंसेवक थे। उनको 9 मास का सश्रम कारावास दिया गया। उसके बाद अ.भा. शारीरिक शिक्षण प्रमुख (सर सेनापति) श्री मार्तण्‍ड राव जोग, नागपुर के जिलासंघचालक श्री अप्‍पाजी हळदे आदि अनेक कार्यकर्ताओं और शाखाओं के स्‍वयंसेवकों के जत्‍थों ने भी सत्‍याग्रहियों की सुरक्षा के लिए 100 स्‍वयंसेवकों की टोली बनाई जिसके सदस्‍य सत्‍याग्रह के समय उपस्थित रहते थे।
8 अगस्‍त को गढवाल दिवस पर धारा 144 तोडकर जुलूस निकालने पर पुलिस की मार से अनेक स्‍वयंसेवक घायल हुए।
विजयादशमी 1931 को डाक्‍टर जी जेल में थे, उनकी उनुपस्थिति में गांव-गांव में संघ की शाखाओं पर एक संदेश पढा गया, जिसमें कहा गया था- ‘’देश की परतंत्रता नष्‍ट होकर जब तक सारा समाज बलशाली और आत्‍मनिर्भर नहीं होता तब तक रे मना ! तुझे निजी सुख की अभिलाषा का अधिकार नहीं।‘’
जनवरी 1932 में विप्‍लवी दल द्वारा सरकारी खजाना लूटने के लिए हुए बालाघाट काण्‍ड में वीर बाघा जतीन (क्रान्तिकारी जतीन्‍द्र नाथ) अपने साथियों सहित शहीद हुए और श्री बाला जी हुद्दार आदि कई क्रान्तिकारी बन्‍दी बनाए गए। श्री हुद्दार उस समय संघ के अ.भा. सरकार्यवाह थे।
संघ पर प्रतिबन्‍ध
संघ के विषय में गुप्‍तचर विभाग की रपट के आधार पर मध्‍य भारत सरकार (जिसके क्षेत्र में नागपुर भी था) ने 15 दिसम्‍बर 1932 को सरकारी कर्मचारियों को संघ में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया।
डॉ. हेडगेवार जी के देहान्‍त के बाद 5 अगस्‍त 1940 को सरकार ने भारत सुरक्षा कानून की धारा 56 व 58 के अन्‍तर्गत संघ की सैनिक वेशभूषा और प्रशिक्षण पर पूरे देश में प्रतिबंध लगा दिया।
1942 का भारत छोडो आंदोलन
संघ के स्‍वयंसेवकों ने स्‍वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत छोडो आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। विदर्भ के अष्‍टी चिमूर क्षेत्र में समानान्‍तर सरकार स्‍थापित कर दी। अमानुषिक अत्‍याचारों का सामना किया। उस क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक स्‍वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान किया। नागपुर के निकट रामटेक के तत्‍कालीन नगर कार्यवाह श्री रमाकान्‍त केशव देशपांडे उपाख्‍य बाळासाहब देशपाण्‍डे को आन्‍दोलन में भाग लेने पर मृत्‍युदण्‍ड सुनाया गया। आम माफी के समय मुक्‍त होकर उन्‍होंने वनवासी कल्‍याण आश्रम की स्‍थापना की।
देश के कोने-कोने में स्‍वयंसेवक जूझ रहे थे। मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झण्‍डा फहराते स्‍वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलाई, अनेक घायल हुए।
आंदोलनकारियों की सहायता और शरण देने का कार्य भी बहुत महत्‍व का था। केवल अंग्रेज सरकार के गुप्‍तचर ही नहीं, कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी के आदेशानुसार देशभक्‍तों को पकडवा रहे थे। ऐसे में जयप्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली दिल्‍ली के संघचालक लाला हंसराज गुप्‍त के यहां आश्रय पाते थे। प्रसिद्ध समाजवादी श्री अच्‍युत पटवर्धन और साने गुरूजजी ने पूना के संघचालक श्री भाऊसाहब देशमुख के घर पर केन्‍द्र बनाया था। ‘पतरी सरकार’ गठित करनेवाले प्रसिद्ध क्रान्तिकर्मी नाना पाटील को औंध (जिला सतारा) में संघचालक पं. सातवलेकर जी ने आश्रय दिया।
स्‍वतंत्रता प्राप्ति हेतु संघ की योजना
ब्रिटिश सरकार के गुप्‍तचर विभाग ने 1943 के अन्‍त में संघ के विषय में जो रपट प्रस्‍तुत की वह राष्‍ट्रीय अभिलेखागार की फाइलों में सुरक्षित है, जिसमें सिद्ध किया है कि संघ योजनापूर्वक स्‍वतंत्रता प्राप्ति की ओर बढ रहा है। - सभार सुमन सौरभ ब्लाँग

साथ ही 1962-62 में भारत चीनयुद्ध के समय भारत में आन्तरिक सुरक्षा और यातायात सुरक्षा का निर्वाह भी संघ ने ही किया था। 26 जनवरी 1963 को गंणतंत्र दिवस की परेड में भारत की सेना चीन सीमा पर होने के कारण स्थगित करी जने वाली थी लेकिन संघ ने 3500 स्वयं सेवकों के साथ इस का कर्तव्य का निर्वाह बहुत ही अनुशासित ढंग से कर पूरे विश्व से समक्ष एक भारत की लाज़ बचाई जिसके लिये पूरा देश उस समय संघ की वाहवाही कर रहा था.
 
 

साथ ही 1962-62 में भारत चीनयुद्ध के समय भारत में आन्तरिक सुरक्षा और यातायात सुरक्षा का निर्वाह भी संघ ने ही किया था। 26 जनवरी 1963 को गंणतंत्र दिवस की परेड में भारत की सेना चीन सीमा पर होने के कारण स्थगित की  जाने  वाली थी लेकिन संघ ने 3500 स्वयं सेवकों के साथ इस का कर्तव्य का निर्वाह बहुत ही अनुशासित ढंग से कर पूरे विश्व से समक्ष एक भारत की लाज़ बचाई जिसके लिये पूरा देश उस समय संघ की वाहवाही कर रहा था
 
जय हिंद

2 May 2011

इस ब्लॉग का पता बदल गया है

इस ब्लॉग का पता बदल गया है आप मेरे नए लेख http://vishvguru.blogspot.com/    पर देख सकते है.

20 Apr 2011

सर्व देवमयी गौमाता

ॐ ॐ ॐ परम कृपालु परमात्मा की आज्ञा से यह लिख रहा हु जो की अत्यंत दयालु एव कृपावान हे. ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ   नमो श्री सद्गुरु पात्र ब्रह्मा इन्द्र इमामशाह आध विष्णु निरंजन कल्कि आत्माय नमो नम: ॐ ॐ



सर्व देवमयी  गौमाता यस पोस्ट में सलीम खान की  २६ अक्तूबर २००९  की पोस्ट  जिसका शीषर्क था गौमाता के आदर व् सम्मान का क्या यह मतलब है! के प्रतिक में लिख रहा हूँ.  सलीम खानजी में आपकी संकाओ का समाधान भी देता हु जिसके लिए मै आपसे कुछ प्रश्न पूछूँगा जिसका जवाब दे.!!!!   निचे ब्लू कलर के सब्द सलीम खान के हे 


आपने अपनी पोस्ट मै कहाँ है की  "मुहम्मद सल्ल. की हदीस के यह शब्द, कि पेशाब की छीटों से बचो!!!"   आप यह वाक्य लिख कर अपनी मानसिकता से  गो माता की और हिन्दू धर्म नि निंदा करते है अब मै आपको मो. सल्ल के जीवन की कुछ गटना के बारे में बताता हु. आप सायद जानते होंगे !!!  कृपया निचे पढ़े.


1 -मुहम्मद सल्ल पैगम्बर साहेब ने मुसलमानों को ऊंट की पेशाब पिलायी

"अनस ने कहा की "उक्ल और उरैना "के लोगों की शिकायत है कि,उन लोगों को मक्का का मौसम माफिक नहीं अ रहा है ,और वे बीमार हो रहे है .रसूलल्लाह ने आदेश दिया कि उनको ऊँटों के ल्हुन्द के पास ले चलो .फिर रसूल ने उन लोगों से कहा तुम ऊंट की पेशाब पीया करो .यह एक कारगर और आजमाई हुई दवा है ,लोगों ने ऐसा ही किया .कुछ समय में वे स्वस्थ हो गए "


बुखारी -(वुजू )जिल्द 1 किताब 4 हदीस 234 

बुखारी -जिल्द 8 किताब 82 हदीस 794 

2 -नए मुसलमान ऊंट की पेशाब पीते थे 

"फिर इसके बाद जो भी व्यक्ति मुसलमान बनने के लिए रसूल के पास आता था वे उसे ऊंट की पेशाब जरूर पिलाते थे .रसूल फरमाते थे कि ऊंटों की पेशाब मुफीद होती है और कारगर दवा होने के कारन मैं भी इसका इस्तेमाल करता हूँ .


बुखारी -जिल्द 7 किताब 71 हदीस 590

 अब में सलीम खान से पूछाना चाहता हु की आप ने अपनी पोस्ट में हिन्दू सनातन संप्रदाय के लोगो से प्रश्न किया हे जो इस प्रकार  है  

अगर मूत्र में ही लाभ तलाश करना है तो जननी माता जिस ने नौ महीने आप को अपनी कोख में रखकर पाला है इस बात की ज्यादा पात्र है कि उस के मूत्र के लाभ तलाश किये जायें।
मगर अफसोस कि इन अन्याइयों ने कभी अपनी जन्मदाई माता के मूत्र पर साइन्टीफिक शोद्ध की आवशयकता न समझी, दूसरी ओर उन्हे गाय के मूत्र का साइन्टीफिक लाभ तो दिखाई दिया परन्तु मैडिकल साइन्स का यह निश्‍कर्ष नज़र न आया कि मूत्र में किसी भी जानदार के बदन की तमाम गन्दगियाँ सम्मिलित होती हैं। हर उचित मस्तिष्‍क का व्यक्ति पेशाब करने के बाद अपने हाथों को धोना चाहता है और कभी किसी ने अपने पेशाब को टेस्ट न कराया कि शायद उसमे भी कुछ लाभकारी तत्व विराजमान हों।

अब सलीम खान आप बताये की इस प्रकार की वाहियात पोस्ट को आप स्वच्छ सन्देश कहते हो. और गाय की पूजा करने वालो को अन्याइयो कहा  के जो ऊपर के वाक्य को पढ़ कर समज आता है.
                                      
                                   वास्तविक  स्वच्छ सन्देश नीछे है. 

                  सर्व देवमयी  गौमाता  

गौ माता  जिसकी हम  उपेक्षा कर  रहें  है  उसके गोबर और मूत्र मैसे सुंदर प्लायवूड बन  सकती है. जिसकी दो फेक्टरिया आ रही है. गौमूत्र  मैसे फीनाईल बन सकती है. गौमूत्र से ओईल पेन्ट कलर बन सकती है. और इन्टरनेशनल पेटेन्ट प्राप्त की गई गौमूत्रकी पंचगव्य दवा केन्सर दुर कर  सकती है. गाय के गोबर मे न्यूक्लियर रेडीऐसन को रोकने की छमता होती है.

13 Apr 2011

HIND KI AAVAZ

                                                                       ॐ

ॐ ॐ ॐ परम कृपालु परमात्मा की आज्ञा से यह लिख रहा हु जो की अत्यंत दयालु एव कृपावान हे. ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ   नमो श्री सद्गुरु पात्र ब्रह्मा इन्द्र इमामशाह आध विष्णु निरंजन कल्कि आत्माय नमो नाम: ॐ ॐ

हिंद की आवाज़


हिंद की आवाज़ नाम का यह ब्लॉग लिखने केलिए मैं काफी दिनों से सोच रहा था, हिंद की आवाज़ असल में सलीम खान के ब्लॉग स्वच्छ सन्देश के प्रतिकार में लिख रहा हु. सलीम जी के ब्लॉग में मुझे साम्प्रदायिकता की बू आती हे. सलीम खान अच्छे लेखक हे. लेकिन हर लेख को वह अपनी संकुचित मानसिकता से सोच कर लिखते हे.


कही कही ये महासय हिन्दू देवी देवता की तुलना इस्लाम से करते हे और कही कही बहन फिरदोश को  सलाह देते हे की   "बुरा मत मानियेगा बहन फ़िरदौस आगे आप गच्चा ख़ा गई और जोश में होश खो बैठी; आपने कहा कि क्या फर्क पड़ता है कि आप मंदिर में किसी मूर्ति के सामने जा कर पूजा करें, उसकी इबादत करें, उस मूर्ति को कि ईश्वर समझें.... !!!??? बहन फ़िरदौस तब आप बेशक खुद को, आपने क़ल्ब को खुश रख लीजिये लेकिन इस बिनाह पर आप इंसान तो हैं, लेकिन मुसलमान नहीं...    इस प्रकार आपकी मानसिकता प्रगट होती हे. आप के ब्लॉग से पता चलता हे की आप एक भी ऐसा मोका अपने हाथ से जाने नहीं देते जिसके बहाने आप हिन्दू धर्म की निंदा कर सके.

वास्तव में आप अपनी लकीर बड़ी दिखाने के लिए दुसरो की लकीर छोटी करने का प्रयाश करते हे.  आप किशी हिन्दू के द्वारा हिन्दू धर्म की किशी शास्त्र अथवा ग्रन्थ पर की गयी टिका, निंदा को पढ़ कर सनातन धर्म एव सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लाखो लोगो की भावना को ठेश पोहचाने के लिए ब्लॉग को माध्यम बनाकर आप लिखते हे .

मैं आपसे कुछ सवाल पूछना चाहता हु. जिश प्रकार सनातन धर्म के कुछ नास्तिक लोग अपने धर्म अपने ग्रंथो एव धर्म के देवी देवता के विषय ने मनगठित निंदा करते हे. वैसे ही इस्लाम धर्म के बारे में कुछ नास्तिक अथवा दुसरे धर्म के लोगो द्वारा निंदा की गइ होगी बांग्ला देश की तसलीमा इसका सबसे अच्छा उदाहरण हे यह बात आपसे छुपी नहीं होगी

आपनी नजर में सिर्फ मुस्लमान ही खुदा के बन्दे हे. मतलब की बहुत से संत साईबाबा, विठोबा, गुजरात के जलाराम बापा जिनके बारे में कहावत हे की जहाँ जला वही अलाह साईं बाबा कहते हे की अलाह मालिक सबका मालिक एक , स्वयं साईबाबा शिवजी एव गणेश के मंदिर में जाते थे.

क्या आप वास्तव में मुसलमानों के लिए वर्जित कार्यो को नहीं करते आपको जहाँ तक मुझे पता हे इस्लाम में फिल्मे देखना मना हे पर स्त्री को देखना मना हे क्या आप यह सब कर पाते हे.

अगर आपको लगता हे की आप सचे मुस्लमान हे तो आप खुद अपने धर्म का पालन करना छोड़ कर दुसरो को क्यों धर्म सिखाते हे.
सवाल तो बहुत से हे पर आप खुद अपने मन से मनन कीजिये मुझे पता हे मैं अपना धर्म पूर्ण निष्ठा से नहीं पालन नहीं पाता हु मुजमे हजारो ऐब हे. पर मैं इस्लाम की बुराइ नहीं करता हु.

जिस प्रकार आपको अपने संप्रदाय से आस्था हे. उसी प्रकार मुजे भी अपने सनातन संप्रदाय में पूर्ण आस्था हे. इसका अर्थ यह नहीं हे की मैं इस्लाम  या मो. पैगम्बर साहेबजी की निंदा करू मेरे धर्म में सभी धर्मो का आदर करना सिखाया जाता हे.

हिन्दू सब्द सनातन संप्रदाय में आस्था रखने वाले लोगो को संबोधन करने में प्रयोग किया जाता हे. जिस प्रकार हिन्दू धर्म संप्रदाय में अनेक मत एव पंथ हे उसी प्रकार इस्लाम में भी अनेक मत एव पंथ हे सनातन संप्रदाय में अलग अलग पंथ, मत, देवी देवता, जप, तप, कर्म कांड हे सबकी अपनी मान्यता हे. उसी प्रकार इस्लाम में भी अलग अलग मत हे. सिया, एव सुनी के बारे में सब जानते हे.

इसलिए सलीम खानजी मेरी आपसे गुजारिश हे की आप अपने ब्लॉग में किशी के सम्प्रदाय, मत, कर्म कांड , पूजा विधि अथवा मान्यताओ के बारे में न लिखे तो ही अच्छा हे. क्युकी जो मेरे लिए पूजनीय हे वो आपके लिए पूजनीय न हो और जो आपके लिए पूजनीय हे वो सायद मेरे लिए पूजनीय न हो. तो आप कृपा करने अपने ब्लॉग में मेरे संप्रदाय मेरी आस्था के विषय में ऐसा बिलकुल न लिखे जिससे मेरी भावनाओ को ठेष लगे.

आपके कुछ ब्लॉग पोस्ट जो की आपने अपनी एक तरफी विचारो से लिखी हे उसके बारे में मैं आपका ध्यान आकर्षित करूँगा और आपसे दरखास्त करूँगा की आप अपने मन को और विचारो को अपने ब्लॉग के नाम के अनुरूप बनायेगे.